आरक्षण सिर्फ किताबों तक सीमित क्यों? – OBC समुदाय के हक की हो रही अनदेखी पर एक गंभीर प्रश्न
भारत का संविधान, देश के हर नागरिक को समानता और सामाजिक न्याय का अधिकार देता है। लेकिन क्या वास्तव में समाज के सभी वर्गों को वह अधिकार और अवसर मिल पा रहे हैं, जिसकी गारंटी संविधान देता है?
हाल ही में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा कोमलप्रीत कौर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में पारित आदेश ने एक बार फिर इस सवाल को हवा दी है। कोमलप्रीत कौर, जो एक OBC समुदाय (जाट सिख) से हैं, ने राजीव गांधी नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ, पटियाला में OBC के लिए आरक्षण न होने के खिलाफ याचिका दायर की थी। परंतु कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि संविधान का अनुच्छेद 15(4) केवल "सशक्त करने वाला प्रावधान" है, ना कि अनिवार्य। इस आधार पर, कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि राज्य सरकार या शैक्षणिक संस्थान को OBC आरक्षण लागू करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
क्या OBC समुदाय के साथ अन्याय हो रहा है?
जब भारत के अधिकांश राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों (NLUs) में OBC के लिए 27% आरक्षण लागू है, तो राजीव गांधी नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, पटियाला में सिर्फ 2 सीटें OBC के लिए क्यों रखी गई हैं? क्या यह संविधान की भावना का अपमान नहीं है?
यह फैसला उस सच्चाई को उजागर करता है कि आज भी OBC समुदाय को उसके संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है, और यह प्रक्रिया एक नीतिगत बहानेबाज़ी की आड़ में की जा रही है।
संविधान का अपमान या नीतिगत चुप्पी?
अनुच्छेद 15(4) यह कहता है कि राज्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है। लेकिन जब यह “कर सकता है” कहता है, तो इसका मतलब यह नहीं कि “करना नहीं है।” यह तो राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और OBC वर्ग के प्रति उदासीनता को दर्शाता है।
OBC समुदाय को अब जगना होगा!
यह वक्त है जब OBC समाज को अपने संवैधानिक अधिकारों के हनन के खिलाफ संगठित होकर आवाज उठानी चाहिए:
-
हर राज्य में शैक्षणिक संस्थानों में OBC आरक्षण की समीक्षा की माँग की जाए।
-
विश्वविद्यालयों की आरक्षण नीतियों को न्यायपालिका और संसद के सामने चुनौती दी जाए।
-
सामाजिक संगठनों और छात्र संघों को एकजुट कर जन आंदोलन शुरू किया जाए।
-
मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से जागरूकता फैलाई जाए।
एक सवाल जो पूरे OBC समाज को खुद से पूछना चाहिए:
क्या हम अपने ही देश में अपने अधिकारों के लिए बार-बार भीख मांगेंगे, या संगठित होकर अपने हक़ को पाने के लिए आवाज़ उठाएंगे?
🟥 "आरक्षण कोई दया नहीं, यह हमारा संवैधानिक हक़ है। और जब हक छीना जाए, तो चुप रहना सबसे बड़ा अपराध है।"


0 Comments